जन्म कुण्डली देखने के नियम - 2



 किसी भी जन्म कुण्डली का फल ज्ञात करते समय निम्नलिखित निर्देशों एवं जानकारियों को ध्यान में रखें।
  1. गुरु पहले, चौथे, पांचवें, नौवें एवं दसवेें भाव में हो, तो एक लाख देाषों को काट देता है, ऐसा माना जाता है। इसी सन्दर्भ में इन भावों में स्थित बुध के बारे में सौ और शुक्र के बारे में हजार दोषों को काट डालने की मान्यता है।
  2. सातवें भाव में गुरु शत्रुनाशक होता है।
  3. दशम भाव में मंगल भाग्य में वृद्धि करता है।
  4. आठवें भाव में शनि दीर्घायुकारक होता है।
  5. ग्यारहवें भाव में सूर्य हो और चन्द्रमा शुभ लग्न में हो, तो नवांश दोष समाप्त हो जाता है।
  6. चौथे, दसवें या ग्यारहवें भाव में बैठा लग्नेश (लग्न का स्वामी) दोषों को दूर करता है।
  7. लग्न या लग्नेश शुभ होने पर अनेक प्रकार के दोषों को नष्ट कर देता है।
  8. आठवें भाव का अष्टमेश शुभ हो या पाप ग्रह वह सदा अशुभ फल ही देता है, परन्तु लग्नेश और अष्टमेश एक ही ग्रह हो या सूर्य$चन्द्र हो या अष्टमेश गृही हो, तो फल शुभ होता है।
  9. ग्रहों की युति किसी भाव में होने पर, अकेले-अकेले ग्रह की उसी भाव में स्थिति के फल से फल भिन्न हो जाता है।
  10. दूसरे एवं बारहवें भाव के स्वामी का प्रभाव अस्थिर होता है।
  11. तीसरे, छठे या ग्यारहवें भाव के स्वामी अशुभ फल देते हैं। इन तीनों में पहले से दूसरा, दूसरे से तीसरा अधिक अशुभ होता है।
  12. मंगल, शुक्र एवं शनि त्रिक (छठवां, आठवां एवं बारहवां) में हों, तो इनका दोष समाप्त हो जाता हैै।
  13. त्रिक में पाप ग्रह हो, तो भाव में अशुभ फल में वृद्धि होती है।
  14. केेन्द्र या त्रिकोण स्थित शुभ एवं पाप ग्रह का मिश्रण अपनी स्थिति के अनुसार मिश्रित फल देता है।
  15. नीच राशि अथवा शत्रु के क्षेत्र का ग्रह शुभ हो या पा किसी भाव में बैठा हो, तो उस भाव की हानि होती है।
  16. किसी भाव से दूसरे या बारहवें भाव में से किसी एक भाव में शुभ ग्रह हो, तो उस भाव का फल स्थिर रहता है।
  17. किसी भाव से दूसरे या बारहवें भाव (दोनों में) शुभ ग्रह हो, तो उस भाव का फल शुभ होता है।
  18. किसी भाव से दूसरे या बारहवें भाव में  (दोनों में) पाप ग्रहों की स्थिति हो, तो उस भाव के फल का नाश हो जाता है या हानि होती है।
  19. किसी भाव का स्वामी नीच या अस्त होकर केन्द्र या त्रिकोण में बैठा हो, तो उस भाव का फल बिगड़ता है। यानी केन्द्र या त्रिकोणस्थ होने से मिलने वाला लाभ नहीं मिलता या अल्प मिलता है।
  20. जब सभी ग्रह राहु एवं केतु के बीच में होते हैं, तो सभी तरह की हानि होती है। यह कालसर्प योग है।
  21. राहु या केतु त्रिकोण में केेंद्र के किसी भाव के स्वामी के साथ हो, तो शुभ फल होता है।
  22. तीसरे, छठे, दसवें एवं ग्यारहवें भाव में स्थित राहु या केतु शुभ फल देते हैं।
  23. चतुर्थेश, पंचमेश, सप्तमेश, नवमेश, दशमेश एवं लग्नेश धन एवं सुख प्रदान करते हैं।
  24. भाव के अनष्टिकारी होने पर भाव में स्थित ग्रह के शुभ होता है।
  25. कुछ विद्वानों के मत में केन्द्र स्थित या त्रिकोण स्थित गुरु एवं शुक्र अशुभ फल देते हैं।
  26. जिस भाव में जो राशि हो, उस राशि का स्वामी ग्रह ही उस भाव का ‘भावेश’ कहलाता है।
  27. किसी भाव के फल प्रतिपादन के समय यह जानना आवश्यक होता है कि उस भाव का भावेश किस भाव में स्थित है और किस भाव का स्वामी किस भाव में क्या फल देता है।
  28. सूर्य, मंगल, शनि एवं राहु पाप ग्रह हैं। ये पाप ग्रह की राशियों के साथ हों, तो अधिक अशुभ और शुभ ग्रह की राशि में इनका अशुभ फल कम हो जाता है।
  29. पहले, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें एवं दसवें भाव में शुभ ग्रह शुभ एवं तीसरे, छठे एवं ग्याहरवें भाव में पाप ग्रह शुभ होता है।
  30. पांचवें भाव से नौवां भाव अधिक शक्तिशाली होता है।
  31. प्रिवार के सभी सदस्यों की कुण्डलियां एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं।
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